तिरसूल
अंधेरी
रात है, मूसलाधार पानी बरस
रहा है। खिड़कियों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिड़की से बाहर
जाती है तो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें तीरों की तरह नोकदार, लम्बी, मोटी, गिरती हुई नजर आ जाती हैं। इस वक्त अगर
घर में आग भी लग जाय तो शायद मैं बाहर निकलने की हिम्मत न करूं। लेकिन एक दिन जब
ऐसी ही अंधेरी भयानक रात के वक्त मैं मैदान में बन्दूक लिये पहरा दे रहा था। उसे
आज तीस साल गुजर गये। उन दिनों मैं फौज में नौकर था। आह! वह फौजी जिन्दगी कितने
मजे से गुजरती थी। मेरी जिन्दगी की सबसे मीठी, सबसे सुहानी यादगारें उसी जमाने से
जुड़ी हुई हैं। आज मुझे इस अंधेरी कोठरी में अखबारों के लिए लेख लिखते देखकर कौन
समझेगा कि इस नीमजान, झुकी
हुई कमरवाले खस्ताहाल आदमी में भी कभी हौसला और हिम्मत और जोश का दरिया लहरे मारता
था। क्या-क्या दोस्त थे जिनके चेहरों पर हमेशा मुसकराहट नाचती रहती थी। शेरदिल
रामसिंह और मीठे गलेवाले देवीदास की याद क्या कभी दिल से मिट सकती है? वह अदन, वह बसरा, वह मिस्त्र; बस आज मेरे लिए सपने हैं। यथार्थ है तो
यह तंग कमरा और अखबार का दफ्तर।
हां, ऐसी ही अंधेरी डरावनी सुनसान रात थी।
मैं बारक के सामने बरसाती पहने हुए खड़ा मैग्जीन का पहरा दे रहा था। कंधे पर भरा
हुआ राइफल था। बारक के से दो-चार सिपाहियों के गाने की आवाजें आ रही थीं, रह-रहकर जब बिजली चमक जाती थी तो सामने
के ऊंचे पहाड और दरख्त और नीचे का हराभरा मैदान इस तरह नजर आ जातेथे जैसे किसी
बच्चे की बड़ी-बड़ी काली भोली पुतलियों में खुशी की झलक नजर आ जाती है।
धीरे-धीरे बारिश ने तुफानी सूरत
अख्तियार की। अंधकार और भी अंधेरा, बादल
की गरज और भी डरावनी और बिजली की चमक और भी तेज हो गयी। मालूम होता था प्रकृति
अपनी सारी शक्ति से जमीन को तबाह कर देगी।
यकायक मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे सामने
से किसी चीज की परछाई-सी निकल गयी। पहले तो मुझे खयाल हुआ कि कोई जंगली जानवर होगा
लेकिन बिजली की एक चमक ने यह खयाल दूर कर दिया। वह कोई आदमी था, जो बदन को चुराये पानी में भिगता हुआ एक
तरफ जा रहा था। मुझे हैरत हुई कि इस मूलसाधार वर्षा में कौन आदमी बारक से निकल
सकता है और क्यों? मुझे
अब उसके आदमी होने में कोई सन्देह न था। मैंने बन्दूक सम्हाल ली और फोजी कायदे के
मुताबिक पुकारा—हाल्ट,
हू कम्स देअर? फिर भी कोई जवाब नहीं। कायदे के मुताबिक
तीसरी बार ललकारने पर अगर जवाब न मिले तो मुझे बन्दूक दाग देनी चाहिए थी। इसलिए
मैंने बन्दूक हाथ में लेर खूब जोर से कड़ककर कहा—हाल्ट, हू कम्स देअर? जवाब तो अबकी भी न मिला मगर वह परछाई
मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। अब मुझे मालूम हुआ कि वह मर्द नहीं औरत है। इसके पहले
कि मैं कोई सवाल करूं उसने कहा—सन्तरी,
खुदा के लिए चुप रहो। मैं हूं लुईसा।
मेरी हैरत की कोई हद न रही। अब मैंने उस
पहचान लिया। वह हमारे कमाण्डिंग अफसर की बेटी लुईसा ही थी। मगर इस वक्त इस
मूसलाधार मेह और इस घटाटोप अंधेरे में वह कहां जा रही है? बारक में एक हजार जवान मौजूद थे जो उसका
हुक्म पूरा कर सकते थे। फिर वह नाजुकबदन औरत इस वक्त क्यों निकली और कहां के लिए
निकली? मैंने आदेश के स्वर
में पूछा—तुम इस वक्त कहां जा
रही हो?
लुईसा ने विनती के स्वर में कहा—माफ करो सन्तरी, यह मैं नहीं बता सकती और तुमसे
प्रार्थना करती हूं यह बात किसी से न कहना। मैं हमेशा तुम्हारी एहसानमन्द रहूंगी।
यह कहते-कहते उसकी आवाज इस तरह कांपने
लगी जैसे किसी पानी से भरे हुए बर्तन की आवाज।
मैंने उसी सिपाहियाना अन्दाज में कहा—यह कैसे हो सकता है। मैं फौज का एक अदना
सिपाही हूं। मुझे इतना अख्तियार नहीं। मैं कायदे के मुताबिक आपको अपने सार्जेन्ट
के सामने ले जाने के लिए मजबूर हूं।
‘लेकिन क्या तुम नहीं जानते कि मैं
तुम्ळारे कमाण्डिंग अफसर की लड़की हूं?
मैंने जरा हंसकर जवाब दिया—अगर मैं इस वक्त कमाण्डिंग अफसर साहब को
भी ऐसी हालम में देखूं तो उनके साथ भी मुझे यही सख्ती करनी पड़ती। कायदा सबके लिए
एक-सा है और एक सिपाही को किसी हालत में उसे तोड़ने का अख्तियार नही है।
यह निर्दय उत्तर पाकर उसने करुणा स्वर
में पूछा—तो फिर क्या तदबीर है?
मुझे उस पर रहम तो आ रहा था लेकिन
कायदों की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। मुझे नतीजे का जरा भी डर न था। कोर्टमार्शल
या तनज्जुली या और कोई सजा मेरे ध्यान में न थी। मेरा अन्त:करण भी साफ था। लेकिन
कायदे को कैसे तोडूं। इसी हैस-बैस में खड़ा था कि लुईसाने एक कदम बढ़कर मेरा हाथ
पकड़ लिया और निहायत पुरदर्द बेचैनी के लहाजे में बोली—तो फिर मैं क्या करूं?
ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसका दिल
पिघला जा रहा हो। मैं महसूस कर रहा था कि उसका हाथ कांप रहा था। एक बार जी में आया
जाने दूं। प्रेमी के संदेश या अपने वचन की रक्षा के सिवा और कौन-सी शक्ति इस हालत
में उसे घर से निकलने पर मजबूर करती? फिर मैं क्यों किसी की मुहब्बत की राह का काटा बनूं। लेकिन
कायदे ने फिर जबान पकड़ ली। मैंने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश न करके मुंह फेरकर
कहा—और कोई तदबीर नहीं
है।
मेरा जवाब सुनकर उसकी पकड़ ढीली पड़ गई
कि जैसे शरीर में जान न हो पर उसने अपना हाथ हटाया नहीं, मेरे हाथ को पकड़े हुए गिड़गिड़ा कर
बोली—संतरी, मुझ पर रहम करो। खुदा के लिए मुझ पर रहम
करों मेरी इज्जत खाक में मत मिलाओ। मैं बड़ी बदनसीब हूं।
मेरे हाथ पर आंसूओं के कई गरम कतरे टपक
पड़े। मूसलाधार बारिश का मुझ पर जर्रा-भर भी असर न हुआ था लेकिन इन चन्द बूंदों ने
मुझे सर से पांव तक हिला दिया।
मैं बड़े पसोपेश में पड़ गया। एक तरफ
कायदे और कर्ज की आहनी दीवार थी, दूसरी
तरफ एक सुकुमार युवती की विनती-भरा आग्रह। मैं जानता था अगर उसे सार्जेण्ट के
सिपुर्द कर दूंगा तो सवेरा होते ही सारे बटालिन में खबर फैल जाएगी, कोर्टमार्शल होगा, कमाण्डिंग अफसर की लड़की पर भी फौज का
लौह कानून कोई रियायत न कर सकेगा। उसके बेरहम हाथ उस पर भी बेदर्दी से उठेंगे।
खासकर लड़ाई के जमाने में।
और अगर इसे छोड़ दूं तो इतनी ही बेदर्दी
से कानूने मेरे साथ पेश आयेगा। जिन्दगी खाक में मिल जायेगी। कौन जाने कल जिन्दा भी
रहूं या नहीं। कम से कम तनज्जुली तो होगी ही। भेद छिपा भी रहे तो क्या मेरी
अन्तरात्मा मुझे सदा न धिक्कारेगी? क्या
मैं फिर किसी के सामने इसी दिलेर ढंग से ताक सकूंगा? क्या मेरे दिल में हमेशा एक चोर-सा न
समाया रहेगा?
लुईसा बोल उठी—सन्ती!
विनती
का एक शब्द भी उसके मुंह से न निकला। वह अब निराशा की उस सीमा पर पहुंच चुकी थी जब
आदमी की वाक्शक्ति अकेले शब्दों तक सीमित हो जाती है। मैंने सहानुभूति के स्वर मे
कहा—बड़ी मुश्किल मामला
है।
‘सन्तरी, मेरी इज्जत बचा लो। मेरे सामर्थ्य में
जो कुछ है वह तुम्हारे लिए करने को तैयार हूं।’
मैंने स्वाभिमानपूर्वक कहा—मिस लुईसा, मुझे लालच न दीजिए, मैं लालची नहीं हूं। मैं सिर्पु इसलिए
मजबूर हूं कि फौजी कानून को तोड़ना एक सिपाही के लिए दुनिया में सबसे बड़ा जुर्म
है।
‘क्या एक लड़की के सम्मान की रक्षा करना
नैतिक कानून नहीं है? क्या
फौजी कानून नैतिक कानून से भी बड़ा है?’ लुईसाने जरा जोश में भरकर कहा।
इस सवाल का मेरे पास क्या जवाब था।
मुझसे कोई जवाब न बन पड़ा। फौजी कानून अस्थाई, परिवर्तनशील होता है, परिवेश के अधीन होता है। नैतिक कानून
अटल और सनातन होता है, परिवेश
से ऊपर। मैंने कायल होकर कहा—जाओ
मिस लुईसा, तुम अब आजाद हो,
तुमने मुझे लाजवाब कर दिया। मैं फौजी
कानून तोड़कर इस नैतिक कर्त्तव्य को पूरा करूंगा। मगर तुमसे केवल वही प्रार्थना है
कि आगे फिर कभी किसी सिपही को नैतिक कर्त्तव्य का उपदेश न देना क्योंकि फौजी कानून
फौजी कानून है। फौज किसी नैतिक, आत्मिक
या ईश्वरीय कानून की परवाह नहीं करता।
लुईसा ने फिर मेरा हाथ पकड़ लिया और
एहसान में डूबे हुए लहजे में बोली—सन्तरी,
भगवान् तुम्हें इसका फल दे।
मगर फौरन उसे संदेह हुआ कि शायद यह
सिपाही आइन्दा किसी मौके पर यह भेद न खोल दे इसलिए अपने और भी इत्मीनान के खयाल से
उसने कहा—मेरी आबरू अब तुम्हारे
हाथ है।
मैंने विश्वास दिलाने वाले ढंग से कहा—मेरी ओर से आप बिल्कुल इत्मीनान रखिए।
‘कभी किसी से नहीं कहोगे न?’
‘कभी नहीं।’
‘कभी नहीं?’
‘हां, जीते जी कभी नहीं।’
‘अब मुझे इत्मीनान हो गया, सन्तरी। लुईसा तुम्हारी इस नेकी और
एहसान को मौत की गोद में जाते वक्त भी न भूलेगी। तुम जहां रहोगे तुम्हारी यह बहन
तुम्हरे लिए भगवान से प्रार्थना करती रहेगी। जिस वक्त तुम्हें कभी जरुरत हो,
मेरी याद करना। लुईसा दूनिया के उस पर्द
पर होगी तब भी तुम्हारी खिदमत के लिए हाजिर होगी। वह आज से तुम्हें अपना भाई समझती
है। सिपाही की जिन्गी में ऐसे मौके आते हैं, जब उसे एक खिदमत करने वाली बहन की जरुरत
होती है। भगवान न करे तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा मौका आयें लेकिन अगर आयें तो लुईसा
अना फर्ज अदा करने में कभी पीछे न रहेगी। क्या मैं अपने नेकमिजाज भाई का नाम पूछ
सकती हूं?’
बिजली एक बार चमक उठी। मैंने देखा लुईसा
की आंखों में आंसू भरे हुए हैं। बोला-लुईसाख् इन हौसला बढ़ाने वाली बातों के लिए
मैं तुम्हारा ह्रदय से कृतज्ञ हूं। लेकिन मैं जो कुछ कर रहर हूं, वह नैतिकता औरहमदर्दी के नाते कर रहा
हूं। किसी इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। मेरा नाम पूछकर क्या करेगी?
लुईसा ने शिकायत के स्वर में कहा-क्या
बहन के लिए भाई का नाम पूछना भी फौजी कानून के खिलाफ है?
इन शब्द में कुछ ऐसी सच्चाई, कुछ ऐस प्रेम, कुछ ऐसा अपनापन भरा हुआ था, कि मेरी आंखों मे बरबस ऑंसू भर आये।
बोला—नहीं लुईसा, मैं तो सिर्फ यही चाहता हूं कि इस भाई
जैसे सलूक में स्वार्थ की छाया भी न रहने पाये। मेरा नाम श्रीनाथ सिंह है।
लुईसा ने कृतज्ञता व्यक्त करने के तौर
पर मेरा हाथ धीरे से दबाया और थैक्स कहकर चली गई। अंधेरे के कारण बिल्कुल नजर न
आया कि वह कहां गई और न पूछना ही उचित था। मैं वहीं खड़ा-खड़ा इस अचानक मुलाकात के
पहलुओं को सोचता रहा। कमाण्डिंग अफसर की बेटी क्या एक मामूली सिपाही को और वह भी
जो काल आदमी हो, कुत्ते
से बदत्तर नहीं समझती? मगर
वही औरत आज मेरे साथ भाई का रिश्ता कायम करके फूली नहीं समाती थी।
इसके
बाद कई साल बीत गये। दुनिया में कितनी ही क्रान्तियां हो गई। रुस की जारशाही मिट
गई, जर्मन को कैसर दुनिया
के स्टेज से हमेशा के लिए बिदा हो गया, प्रातंत्र की एक शताब्दी में जितना उन्नती हुई थी, उतनी इन थोड़े-से सालों में हो गई। मेरे
जीवन में भी कितने ही परिर्वतन हुए। एक टांग युद्ध के देवता की भेंट हो गई,
मामूली से लेफ्टिनेंट हो गया।
एक दिन फिर ऐसी चमक और गरज की रात थी।
मैं क्वार्टर मैं बैठ हुआ कप्तान नाक्स और लेफ्टिनेंट डाक्टर चन्द्रसिंह से इसी
घटना की चर्चा कर रहा था जो दस-बारह साल पहले हुई थी, सिर्फ लुईसा का नाम छिपा रखा था। कप्तान
नाक्स को इस चर्चा में असाधरण आनन्द आ रहा था। वह बार-बार एक-एक बात पूछता और घटना
क्रम मिलाने के लिए दुबारा पूछता था। जब मैंने आखिर में कहा कि उस दिन भी ऐसा ही
अंधेरी रात थी, ऐसी
ही मूसलाधार बारिश हो रही थी और यही वक्त था तो नाक्स अपनी जगह स उठकर खड़ा हो गया
और बहुत उद्विग्न होकर बोला-क्या उस औरत का नाम लुईसा तो नहीं था?
मैंन आश्चर्य से कहा, ‘आपको उसका नाम कैसे मालूम हुआ? मैंने तो नहीं बतलाया’, पर नाक्स की आंखों में आंसू भर आये।
सिसकियां लेकर बोले—यह
सब आपको अभी मालूम हो जाएगा। पहले यह बतलाइए कि आपका नाम श्रीनाथ सिंह हैं या
चौधरी।
मैंने कहा-मेरा नाम श्रीनाथ सिंह है। अब
लोग मुझे सिर्फ चौधरी कहते है। लेकिन उस वक्त चौधरी का नाम से मुझे कोई न जानता
था। लोग श्रीनाथ कहते थे।
कप्तान नाक्स अपनी कुर्सी खींचकर मेर
पास आ गये और बोले-तब तो आप मेरे पुराने दोस्त निकाल। मुझे अब तब नाम के बदल जाने
से धोखा हो रहा था, वर्ना
आपका नाम तो मुझे खूब याद है। हां, ऐसा
याद है कि शायद मरते दम तक भी न भूलूं क्योंकि य उसकी आखिर वसीयत है।
यह कतहे-कहते नाक्स खामोश हो गये और
आंखें बन्द करके सर मेज पर रख लिया। मेरा आश्चर्य हर क्षण बढ़ता ज रहा था और लेफ्टिनझ्ट
डा. चन्द्रसिंह भी सवाल-भरी नजरों से एक बार मेरी तरफ और दूसरी बार कप्तान नाक्स
के चेहरे की तरफ देख रहे थे।
दो मिनट तक खामोश रहने के बाद कप्तान
नाक्स ने सर उठाया और एक लम्बी सांस लेकर बोले-क्यों लेफ्टिनेंट चौधरी, तुम्हें याद है एक बार एक अंग्रेज सिपाही
ने तुम्हें बुरी गाली दी थी?
मैंने कहा-हां,खूब याद है। वह कारपोरल था मन उसका
शिकायत कर दी थी और उसका कोर्टमर्शल हुआ था। व कारपोल के पद से गिर कर मामूली
सिपाही बना दिया गया था। हां, उसका
नाम भी याद आ गया क्रिप या क्रुप...
कप्तान
नाक्स ने बात काटते हुए कहा—किरपिन।
उसकी और मेरी सूरत में आपको कुछ मेल दिखाई पड़ता है? मैं ही वह किरपिन हूं। मेरा नाम सी,
नाक्स है, किरपिन नाक्स। जिस तरह उन दिनों आपको
लोग श्रीनाथ कहते थे उसी तहर मुझे भी किरपिन कहा करते थे।
अब जो मैंने गौर नाक्स की तरफ देखा तो
पहचाना गया। बेशक वह किरपिन ही था। मैं आश्चर्य से उसकी ओर ताकने लगा। लुईसा से
उसका क्या सम्बन्ध हो सकता है, यह
मेरी समझ में उस वक्त भी न आया।
कप्तान नाक्स बोले—आज मुझे सारी कहानी कहनी पड़ेगी।
लेफ्टिनेण्ट चौधरी, तुम्हारी
वजह से जब मै कारपोल से मामूली सिपाही बनाया गया और जिल्लद भी कुछ कम न हुई तो
मेरे दिल में ईर्ष्या और प्रतिशोध की लपटे-सी उठने लगीं। मैं हमेशा इसी फिग्र में
रहता था कि किस तरह तुम्हें जलील करुं किस तरह अपनी जिल्लत का बदला लूं। मैं
तुम्हारी एक-एक हरकत को एक-एक बात को ऐब ढूंढने वाली नजरों से देखा करता था। इन दस-बारह
सालों में तुम्हारी सूरत बहुत कुछ बदल गई और मेरी निगाहों में भी कुछ फर्क आ गया
है जिसके कारण मैं तुम्हें पहचान न सका लेकिन उस वक्त तुम्हारी सूरत हमेशा मेरी
ओखों के सामने रहती थी। उस वक्त मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी तमन्ना यही थी कि किसी
तरह तुम्हें भी नीचे गिराऊं। अगर मुझे मौका मिलता तो शायद मैं तुम्हारी जान लेने
से भी बाज न आता।
कप्तान नाक्स फिर खामोश हो गये। मैं और
डाक्टर चन्द्रसिंह टकटकी लगाये कप्तान नाक्स की तरफ देख रहे थे।
नाक्स ने फिर अपनी दास्तान शुरु की—उस दिन, रात को जब लुईसा तुमसे बातें कर रही थी,
मैं अपने कमरे मैं बैठा हुआ तुम्हें दूर
से देख रहा था। मुझे उस वक्त मालूम था कि वह लुईसा है। मैं सिर्फ यह देख रहा था कि
तुम पहरा देते वक्त किसी औरत का हाथ पकड़े उससे बातें कर रहे हो। उस वक्त मुझे
जितनी पाजीपन से भरी हुई खुशी हुई व बयान नहीं कर सकता। मैंने सोचा, अब इसे जलील करुंगा। बहुत दिनों के बाद
बच्चा फंसे हैं। अब किसी तरह न छोडूंगा। यह फैसला करके मैं कमरे से निकाला और पानी
में भीगता हुआ तुम्हारी तरफ चला। लेकिन जब तक मैं तुम्हारे पास पहुंचूं लुईसा चली
गई थी। मजबूर होकर मैं अपने कमरे लौट आया। लेकिन फिर भी निराश न था, मैं जानता था कि तुम झूठ न बोलोगे और जब
मैं कमाण्डिंग अफसर से तुम्हारी शिकायत करुंगा तो तुम अपना कसूर मान लोगो। मेरे
दिल की आग बुझाने के लिए इतना इम्मीनान काफी था। मेरी आरजू पूरी होने में अब कोई
संदेह न था।
मैंने मुस्कराकर कहा-लेकिन आपने मेरी
शिकायत तो नहीं की? क्या
बाद को रहम आ गया?
नाक्सा ने जवाब दिया-जी, रहम किस मरदूद को आता था। शिकायत न करने
का दूसरा ही कारण था, सबेरा
होते ही मैंने सबसे पहला काम यही किया कि सीधे कामण्डिंग अफसर के पास पहुंचा।
तुम्हें याद होगा मैं उनके बड़े बेटे राजर्स को घुड़सवारी सिखाया करता था इसलिए
वहां जाने में किसी किस्म की झिझक या रुकावट न हुई। जब मैं पहुंचा ता राजर्स ने
कहा—आज इतनी जल्दी क्यों
किरपिन? अभी तो वक्त नहीं हुआ?
आज बहुत खुश नजर आ रहे हो?
मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा—हां-हां, मालूम है। मगर तुमने उसे गाली दी थी।
मैंने किसी कदर झेंपते हुए कहा—मैंने
गाली नहीं दी थी सिर्फ ब्लडी कहा था। सिपाहियों में इस तरह की बदजबानी एक आम बात
है मगर एक राजपूत ने मेरी शिकायत कर दी थी। आज मैंने उसे एक संगीन जुर्म में पकड़
लिया हैं। खुदा ने चाहा तो कल उसका भी कोर्ट-मार्शल होगा। मैंने आज रात को उसे एक
औरत से बातें करते देखा है। बिलकुल उस वक्त जब वह ड्यूटी पर था। वह इस बात से
इन्कार नहीं कर सकता। इतना कमीना नहीं है।
लुईसा के चेहरे का रंग का कुछ हो गया।
अजीब पागलपन से मेरी तरफ देखकर बोली—तुमने और क्या देखा?
मैंने कहा—जितना मैंने देखा है उतना उस राजपूत को
जलील करने के लिए काफी है। जरुर उसकी किसी से आशानाई है और वह औरत हिन्दोस्तानी
नहीं, कोई योरोपियन लेडी
है। मैं कसम खा सकता हूं, दोनों
एक-दूसरे का हाथ पकड़े किलकुल उसी तरह बातें कर रहे थे, जैसे प्रेमी-प्रेमिका किया करते हैं।
लुईसा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं।
चौधरी मैं कितना कमीना हूं, इसका
आन्दाजा तुम खुद कर सकते हो। मैं चाहता हूं, तुम मुझे कमीना कहो। मुझे धिक्कारो। मैं
दरिन्दे=वहशी से भी ज्यादा बेरहम हूं, काले सांप से भी ज्यादा जहरीला हूं। वह खड़ी दीवार की तरफ ताक
रही थी कि इसी बीच राजर्स का कोई दोस्त आ गया। वह उसके साथ चला गया। लुईसा मेरे
साथ अकेली रह गई तो उसने मेरी ओर प्रार्थना-भरी आंखों से देखकर कहा—किरपिन, तुम उस राजपूत सिपाही की शिकायत मत
करना।
मैंने ताज्जबु से पूछा—क्यों?
लुईसा ने सर झुकाकर कह—इसलिए कि जिस औरत को तुमने उसके साथ
बातें करते देखा वह मैं ही था।
मैंने और भी चकित होकर कहा-तो क्या तुम
उसे...
लुईसा ने बात काटकर कहा-चुप, वह मेरा भाई है। बात यह है कि मैं कल
रात को एक जगह जा रही थी: तुमसे छिपाऊंगी नहीं, किरपिन जिसको मैं दिलोजान से ज्यादा
चाहती हूं, उससे रात को मिलने का
वादा था, वह मेरा इन्ताजार में
पहाड़ के दामन में खड़ा था। अगर मैं न जाती तो उसकी कितनी दिलशिकनी होती मैं
ज्योंही मैगजीन के पास पहुंची उस राजपूत सिपाही ने मुझे टोंक दिया। वह मुझे फौजी
कायदे के मुताबिक सार्जेण्ट के पास ले जाना चाहता था लेकिन मेरे बहुत अनुनय-विनय
करने पर मेरी लाज रखने के लिए फौजी कानून तोड़ने को तैयार हो गया। सोचो, उसने आनन सिर कितनी बड़ी जिम्मेदारी ली।
मैंने उसे अपना भाई कहक पुकार है और उसने भी मुझे बहन कहा है। सोचो अगर तुम उसकी
शिकायत करोगे तो उसकी क्या हालत होगी वह नाम न बतलायेगा, इसका मुझे पूरा विश्वास है। अगर उसके
गले पर तलवार भी रख दी जाएगी, तो
भी वह मेरा नाम न बतायेगा, मैं
नहीं चाहती कि एक नेक काम करने का उसे यह इनाम मिले। तुम उसकी शिकायत हरगिज मत
करना। तुमसे यही मेरी प्रार्थना है।
मैंन निर्दय कठोरता से कहा—उसने मेरी शिकायत करके मुझे जलील किया
है। ऐसा अच्छा मौका पाकर मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता। जब तुम को यकीन है कि वह
तुम्हारा नाम नहीं बतायेगा तो फिर उसे जहन्नुम में जाने दो।
लुईसा ने मेरी तरफ घृणापूर्वक देखकर
कह-चुप रहो किरपिन, ऐसी
बातें मुझसे न करो। मैं इसे कभी गवारा न करुंगी कि मेरी इज्जत-आबरु के लिए उसे
जिल्लत और बदनामी का निशान बनना पड़े। अगर तुम मेरी न मानोगे तो मैं सच कहती हूं,
मैं खुदकुशी कर लूंगी।
उस वक्त तो मैं सिर्फ प्रतिशोध का
प्यासा था। अब मेरे ऊपर वासना का भूत सवार हुआ। मैं बहुत दिनों से दिल में लुईसा
की पूजा किया करता था लेकिन अपनी बात कहने का साहस न कर सकता था। अब उसको बस में
लाने का मुझे मौका मिला। मैने सोचा अगर यह उस राजपूत सिपाही के लिए जान देने को
तैयार है तो निश्चय ही मेरी बात पर नाराज नहीं हो सकती। मैंने उसी निर्दय
स्वार्थपरता के साथ कहा-मुझे सख्त अफसोस है मगर अपने शिकार को छोड़ नहीं सकता।
लुईसा ने मेरी तरफ बेकस निगाहों से
देखकर कहा—यह तुम्हारा आखिरी
फैसला है?
मैंने निर्दय निर्लज्जता से कहा—नही लुईसा, यह आखिरी फैसला नहीं है। तुम चाहो तो
उसे तोड़ सकती हो, यह
बिलकुल तुम्हारे इमकान में है। मैं तुमसे कितना मुहब्बत करता हूं, यह आज ति शायद तुम्हें मालूम न हो। मगर
इन तीन सालों में तुम एक पल के लिए भी मेरे दिल से दूर नहीं हुई। अगर तुम मेरी तरफ
से अपने दिल को नर्म कर लो, मेरी
मोहब्बत को कद्र करो तो मै सब कुछ करने को तैयार हूं। मैं आज एक मामूली सिपाही हूं,
और मेरे मुंह से मुहब्बत का निमन्त्रण
पाकर शायद तुम दिल में हंसती होगी, लेकिन
एक दिन मैं भी कप्तान हो जाऊंगा और तब शायद हमारे बीच इतनी बड़ी खाई न रहेगी।
लुईसा ने रोकर कहा-किरपिन, तुम बड़े बेरहम हो, मैं तुमको इतना जालिम न समझती थी। खुदा
ने क्यों तुम्हें इतना संगदिल बनाया, क्या तुम्हें ए बेकस औरत पर जरा भी रहम नहीं आता
मैं उसकी बेचारगी पर दिल में खुश होकर
बोला-जो खुद संगदिल हो उसे दूसरों की संगदिली की शिकयत करने का क्या हक है?
लुईसा ने गम्भीर स्वर में कहा-मैं बेरहम
नहीं हूं किरपिन, खुदा
के लिए इन्साफ करो। मेरा दिल दूसरे का हो चुका, मैं उसके बगैर जिन्दा नहीं रह सकती और
शायद वह भी मेर बगैर जिन्दा न रहे। मैं अपनी बाता रखने के लिए, अपने ऊपर नेकी करने वाले एक आदमी की
आबरु बचाने के लिए अपने ऊपर जर्बदस्त करके अगर तुमसे शादी कर भी लूं तो नतीजा क्या
होगा? जोर-जबर्दस्ती से
मुहब्बत नहीं पैदा होती। मैं कभी तुमसे मुहब्बत न करुंगी...
दोस्तों, आनी बेशर्मी और बेहायई का पर्दाफाश करते
हुए मेरे दिल को दिल को बड़ी सख्त तकलीफ हो रही है। मुझे उस वक्त वासना ने इतना
अन्धा बना दिया था कि मेरे कानों पर जूं तक न रेंगी। बोला—ऐसा मत ख्याल करो लुईसा। मुहब्ब्त अपना
अपना असर जरुर पैदा करती है। तुम इस वक्त मुझे न चाहो लेकिन बहुत दिन न गुजरने
पाएंगे कि मेरी मुहब्बत रंग लाएगी, तुम
मुझे स्वार्थी और कमीना समझ रही हो, समझो, प्रेम
स्वार्थी होता है ही है, शायद
वह कमीना भी होता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि यह नफरत और बेरुखी बहुत दिनों तक न
रहेगी। मैं अपने जानी दुश्मन को छोड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा कीमत लूंगा,
जो मिल सके।
लुईसा पंद्रह मिनट तक भीषण मानसिक यातना
की हालत में खड़ी रही। जब उसकी याद आती है तो जी चाहता है गले में छुरी मार लूं।
आखिर उसने आंसूभरी निगाहों से मेरी तरफ देखकर कहा—अच्छी बात है किरपिन, अगर तुम्हारी यह इच्छा है तो यही सही।
तुम वक्त जाओं, मुझे
खूब जी भरकर रो लेने दो।
यह कहते-कहते कप्तान नाक्स फूट-फूटकर
रोने लगे। मैंने कहा—अगर
आपको यह दर्द—भरी
दास्तान कहने में दु:ख हो रहा है तो जाने दीजिए।
कप्तान नाक्स ने गला साफ करके कहा-नहीं
भाई, वह किस्सा के पास
जाता, और उसके दिल से अपने
प्रतिद्वन्द्वी के खयाल को मिटाने की कोशिश करता। वह मुझे देखते ही कमरे से बाहर
निकल आती, खुश हो-होकर बातें
करती। यहां तक कि मैं समझने लगा कि उसे मुझसे प्यार हो गया है। इसी बीच योरोपियन
लड़ाई छिड़ गई। हम और तुम दोनों लड़ाई पर चले गए तुम फ्रंस गये, मैं कमाण्डिंग अफसर के साथ मिस्र गया।
लुईसा अपने चचा के साथ यहीं रह गई। राजर्स भी उसके के साथ रह गया। तीन साल तक मैं
लाम पर रहा। लुईसा के पास से बराबर खत आते रहे। मैं तरक्कती पाकर लेफ्टिनेण्ट हो
गया और कमाण्डिंग अफसर कुछ दिन और जिन्दा रहते तो जरुर कप्तान हो जाता। मगर मेरी
बदनसीबी से वह एक लड़ाई में मारे गये। आप लोगों को उस लड़ाई का हाल मालूम ही है।
उनके मरने के एक महीने बाद मैं छुट्टी लेकर घर लौटा। लुईसा अब भी अपने चचा के साथ
ही थी। मगर अफसोस, अब
न वह हुस्न थी न वह जिन्दादिली, घुलकर
कांटा हो गई थी, उस
वक्त मुझे उसकी हालत देखकर बहुत रंज हुआ। मुझे अब मालूम हो गया कि उसकी मुहब्बत
कितनी सच्ची और कितनी गहरी थी। मुझेसे शादी का वादा करके भी वह अपनी भावनाओं पर विजय
न पा सकी थी। शायद इसी गम में कुढ़-कुढ़कर उसकी यह हालत हो गई थी। एक दिन मैंने
उससे कहा—लुईसा, मुझे ऐसा खयाल होता है कि शायद तुम अपने
पुराने प्रेमी को भूल नहीं सकीं। अगर मेरा यह खयाल ठीक है तो मैं उस वादे से तुमको
मुक्त करता हूं, तुम
शौक से उसके साघ्थ शादी कर लो। मेरे लिए यही इत्मीनान काफी होगा कि मैं दिन रहते
घर आ गया। मेरी तरफ से अगर कोई मलाल हो तो उसे निकाल डालो।
लुईसा की बड़ी-बड़ी आंखों से आंसू की
बूंदें टपकने लगीं। बोली—वह
अब इस दुनिया में नहीं है किरपिन, आज
छ: महीने हुए वह फ्रांस में मारे गये। मैं ही उसकी मौत का कारण हुई—यही गम है। फौज से उनका कोई संबंध न था।
अगर वह मेरी ओर से निराश न हो जाते तो कभी फौज में भर्ती होते। मरने ही के लिए वह
फौज में गए। मगर तुम अब आ गए, मैं
बहुत जल्द अच्छी हो जाऊंगी। अब मुझमें तुम्हारी बीवी बनने की काबलियत ज्यादा हो
गई। तुम्हारे पहलू में अब कोई कांटा नहीं रहा और न मेरे दिल में कोई गम।
इन शब्दों में व्यंग भरा हुआ था,
जिसका आशय यह था कि मैंने लुईसा के
प्रेमी कीह जान जी। इसकी सच्चाई से कौन इन्कार कर सकता है। इसके प्रायश्चित की अगर
कोई सूरत थी ताक यहीं कि लुईसा की इतनी खातिरदरी, इतनी दिलजोई करुं, उस पर इस तरह न्यैछावर हो जाऊं कि उसके
दिल से यह दुख निकल जाय।
इसके एक महीने बाद शादी का दिन तय हो
गया। हमारी शादी भी हो गई। हम दोनों घर आए। दोस्तों की दावत हुई। शराब के दौर चले।
मैं अपनी खुशनसीबी पर फूला नहीं समाता था और मैं ही क्यों मेरे इष्टमित्र सब मेरी
खुशकिस्मत पर मुझे बधाई दे रहे थे।
मगर क्या मालूम था तकदीर मुझे यों सब्ज
बाग दिखा रही है, क्या
मालूम था कि यह वह रास्ता है, जिसके
पीछे जालिम शिकारी का जाल बिछा हुआ है। मैं तो दास्तों की खातिर-तवाजों में लगा
हुआ था, उधर लुईसा अन्दरकमरे
में लेटी हुई इस दुनिया से रुखसत होने का सामान कर रही थी। मैं एक दोस्त की बधाई
का धन्यावाद दे रहा था कि राजर्स ने आकर कहा-किरपिन, चलो लुईसा तुम्हें बुला रही है। जल्द।
उसकी न जाने क्या हालत हो रही है। मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। दौड़ता हुआ
लुईसा के कमरे में आया।
कप्तान नाक्स की आंखों से फिर आंसू बहने
लगे, आवाज फिर भारी हो गई।
जरा दम लेकर उन्होंने कहा-अन्दर जाकर देखा तो लुईसा कोच पर लेटी हुई थी। उसका शरीर
ऐंठ रहा था। चेहरे पर भी उसी एंठन के लक्षण दिखाई दे रहे थे। मुझे देखकर
बोली-किरपिन, मेरे
पास आ जाओ। मैंने शादी करके अपना वचन पूरा कर दिया। इससे ज्यादा मैं तुम्हें कुछ
और न दे सकती थी क्योंकि मैं अपनी मुहब्बत पहले ही दूसरी की भेंट कर चुकी हूं,
मुझे माफ करना मैंने जहर खा लिया है और
बस कुछ घड़ियों की मेहमान हूं।
मेरी
आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिल पर एक नश्तर-सा लगा। घुटने टेककर उसके पास बैठ
गया। रोता हुआ। बोला—लुईसा,
यह तुमने क्या किया हाय क्या तुम मुझे
दाग देकर जल्दी चली जाओगी, क्या
अब कोई तदबीर नहीं है?
फौरन दौड़कर एक डाक्टर के मकान पर गया।
मगर आह जब तक उसे साथ लेकर आऊं मेरी वफा की देवी, सच्ची लुईसा हमेशा के लिए मुझसे जुदा हो
गई थी। सिर्फ उसके सिरहाने एक छोटा-सा पुर्जा पड़ा हुआ था जिस पर उसने लिखा था,
अगर तुम्हें मेरा भाई श्रीनाथ नजर आये
तो उससे कह देना, लुईसा
मरते वक्त भी उसका एहसान नहीं भूली।
यह कहकर नाक्स ने अपनी वास्केट की जेब
से एक मखमली डिबिया निकाली और उसमें से कागज का एक पुर्जा निकालकर दिखाते हुए
कहा-चौधरी, यही मेरे उस अस्थायी
सौभाग्य की स्मृति है जिसे आज तक मैंने जान से ज्यादा संभाल कर रखा हैं आज तुमसे परिचय
हो गए होगे, मगर
शुक्र है कि तुम जीते-जागते मौजूद हो। यह आमानत तुम्हारे सुपुर्द करता हूं। अब अगर
तुम्हारे जी में आए तो मुझे गोली मार दो, क्योंकि उस स्वार्गिक जीव का हत्यारा मैं हूं।
यह कहते-कहते कप्तान नाक्स फैलकर कुर्सी
पर लेट गए। हम दोनों ही की आंखों से आंसू जारी थे मगर जल्दी ही हमें अपने
तात्कालिक कर्तव्य की याद आ गई। नाक्सा को सान्त्वाना देने के लिए मैं कुर्सी से
उठकर उनके पास गया, मगर
उनका हाथ पकड़ते ही मेरे शरीर में कंपकंपी-सी आ गई। हाथ ठंडा था। ऐसा ठंडा जैसा
आखिर घड़ियों में होता है। मैंने घबराकर उनके चेहरे की तरफ देखा और डाक्टर चन्द्र
को पुकारा। डाक्टर साहब ने आकर ने आकर फौरन उनकी छाती पर हाथ रखा और दर्द-भरे लहजे
में बोले—दिल की धड़कड़ा उठी,
कड़...कड़..कड़..
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