Monday, October 24, 2016

तिरसूल..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



तिरसूल


अंधेरी रात है, मूसलाधार पानी बरस रहा है। खिड़कियों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिड़की से बाहर जाती है तो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें तीरों की तरह नोकदार, लम्बी, मोटी, गिरती हुई नजर आ जाती हैं। इस वक्त अगर घर में आग भी लग जाय तो शायद मैं बाहर निकलने की हिम्मत न करूं। लेकिन एक दिन जब ऐसी ही अंधेरी भयानक रात के वक्त मैं मैदान में बन्दूक लिये पहरा दे रहा था। उसे आज तीस साल गुजर गये। उन दिनों मैं फौज में नौकर था। आह! वह फौजी जिन्दगी कितने मजे से गुजरती थी। मेरी जिन्दगी की सबसे मीठी, सबसे सुहानी यादगारें उसी जमाने से जुड़ी हुई हैं। आज मुझे इस अंधेरी कोठरी में अखबारों के लिए लेख लिखते देखकर कौन समझेगा कि इस नीमजान, झुकी हुई कमरवाले खस्ताहाल आदमी में भी कभी हौसला और हिम्मत और जोश का दरिया लहरे मारता था। क्या-क्या दोस्त थे जिनके चेहरों पर हमेशा मुसकराहट नाचती रहती थी। शेरदिल रामसिंह और मीठे गलेवाले देवीदास की याद क्या कभी दिल से मिट सकती है? वह अदन, वह बसरा, वह मिस्त्र; बस आज मेरे लिए सपने हैं। यथार्थ है तो यह तंग कमरा और अखबार का दफ्तर।

महत्तम समापवर्त्य ..ओमा शर्मा की कहानी



महत्तम समापवर्त्य

 उनकी हर चीज में नफासत थी।
बोल-चाल में संयत ठहराव। पहनावे में जहीनी चटख और हावभाव में गरिमापूर्ण सादगी। घर की इमारत किसी कलात्मक वास्तुशिल्पी ने बनाई थी। घुमावदार सीढ़ियाँ, पर्याप्त रोशनी, लुभावना रंग-रोगन, जगह की व्यवस्था में आमंत्रित-सा करता खुलापन। मुझे तो पुरोहित साहब, यानी मेरे बॉस ने पहले ही बता दिया था कि मिसेज चाँद ने इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स किया हुआ है। आना पहले उन्हीं को था मगर आखिर वक्त में उन्हें किसी जरूरी काम से जाना पड़ा तो उन्होंने मुझे ठेल दिया... कि जाओ और फलाँ बँगले के इंटीरियर में और क्या किया जा सकता है, इसका मुआयना कर आओ। चटख मोटे परदे, विशिष्ट किस्म की मेज-कुर्सियाँ, मेज पर रखे हुए कुछ स्टैच्यूज... हर कमरे की एक अलग ही सज्जा। घर में घुसने के बाद थोड़ी देर बैठने का मन करे। चीजों को निहारने का मन करे। रही-सही कसर पूरी कर दी साज-सज्जा के अनुरूप रखी दो-तीन पेंटिंग्स ने जो पूरे मकान के सौंदर्य पर चार-चाँद लगा रही थीं।

अखबारवाला..मनमोहन भाटिया की कहानी



अखबारवाला

 कॉलिज के दिनों में एक बुरी लत गई, जो आज तक पीछा नही छोङ रही है। कई बार पत्नी से भी बहस हो जाती है, मेरे से ज्यादा प्यारा अखबार है, जिसके साथ जब देखो, चिपके रहतो हो। क्या किया जाए, अखबार पढने का नशा ही कुछ ऐसा है कि सुबह नही मिले तो लगता है कि दिन ही नही निकला। खैर पत्नि की अखबार वाली बात को गंभीरता से नही लेता हूं क्योंकि मेरे ऑफिस जाने के बाद खुद उसने पूरा अखबार चाटना है। पढी लिखी पत्नी चाहे, वो हाऊस वाईफ हो, एक फायदा तो होता है, कम से कम वह अखबार का महत्व समझती है। प्रेम भरी तकरार पति, पत्नी के प्यार को अधिक गाढा करती है। प्रेम भरी तकरार ही गृहस्थ के सूने पन को दूर करती है। तकरार ही आलौकिक प्रेम की जननी है।

Sunday, October 23, 2016

ज्योति..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



ज्योति


विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती-आप तो सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । जब इतनी जल्दी जाना था, तो ब्याह न जाने किसलिए किया । घर में भूनी भॉँग नहीं, चले थे ब्याह करने ! वह चाहती तो दूसररी सगाई कर लेती । अहीरों में इसका रिवाज है । देखने-सुनने में भी बुरी न थी । दो-एक आदमी तैयार भी थे, लेकिन बूटी पतिव्रता कहलाने के मोह को न छोड़ सकी । और यह सारा क्रोध उतरता था, बड़े लड़के मोहन पर, जो अब सोलह साल का था । सोहन अभी छोटा था और मैना लड़की थी । ये दोनों अभी किसी लायक न थे । अगर यह तीनों न होते, तो बूटी को क्यों इतना कष्ट होता । जिसका थोड़ा-सा काम कर देती, वही रोटी-कपड़ा दे देता। जब चाहती किसी के सिर बैठ जाती । अब अगर वह कहीं बैठ जाए, तो लोग यही कहेंगे कि तीन-तीन बच्चों के होते इसे यह क्या सूझी ।

चहल्लुम ..शानी की कहानी

चहल्लुम

अचानक फिर मरदाने में इतने जोर का कहकहा उठा कि मरियम चौंककर सीधी बैठ गई। अबकी बार सहना मुश्किल हो गया था। वह चाहती थी कि बस एक बार उन खुदा के बंदों को देख ले जो गमी का खाना खाने आए थे और मौका-महल का जिन्हें बिल्कुल ध्यान नहीं था। पर वह भी संभव नहीं हुआ। आँगन के बीचोंबीच मरदाने और जनाने को अलग-अलग करने के लिए एक बड़ा-सा परदा तना हुआ था, उस पार देखना सचमुच कठिन था।

आदमी के बारे में सोचते लोग..बलराम अग्रवाल की कहानी



आदमी के बारे में सोचते लोग


यार लोग तीन-तीन पैग गले से नीचे उतार चुके थे। यों शुरू से ही वे चुप बैठे हों, ऐसा नहीं था, लेकिन तब उनकी बातों का केंद्र बोतल में कैद लाल परी थी, सिर्फ लाल परी। उसे पेट में उतार लेने के बाद उन्हें लगा कि पीने-पिलाने को ले कर हुई सारी बातें और बहसें बहुत छोटे और ओछे लोगों जैसी थीं। अब कुछ बातें बड़े और ऊँचे दर्जे के दार्शनिकों जैसी की जानी चाहिए।

सैलानी बंदर..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



सैलानी बंदर
 
जीवनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मन्नू को नचाकर अपनी जीविका चलाया करता था। वह और उसकी स्त्री बुधिया दोनों मन्नू का बहुत प्यार करते थे। उनके कोई सन्तान न थी, मन्नू ही उनके स्नेह और प्रेम का पात्र था दोनों उसे अपने साथ खिलाते और अपने साथ सुलाते थे: उनकी दृष्टि में मन्नू से अधिक प्रिय वस्तु न थी। जीवनदास उसके लिए एक गेंद लाया था।

Saturday, October 22, 2016

कव्वे और काला पानी..निर्मल वर्मा की कहानी



कव्वे और काला पानी

मास्टर साहब पहले व्यक्ति थे, जिनसे मैं उस निर्जन, छोटे, उपेक्षित पहाड़ी कस्बे में मिला था। पहले दिन ही... मैं बस से उतर ही रहा था, तो देखा, सारा शहर पानी में भीग रहा है; भुवाली में धूप, रामगढ़ पर बादल और यहाँ बारिश - हमारी बस ने तीन घंटों के दौरान तीन अलग-अलग मौसम पार कर लिए थे; और अब वह बाजार के बीच खड़ी थी -अपनी छत से मेरा सामान नीचे फट-फट फेंकती हुई, फटीचर सामान, जो मैं दिल्ली से ढो कर वहाँ लाया था - बाबू का एक पुराना होल्डॉल और पुराने जमाने का टीन का ट्रंक, जिस पर पुरानी यात्राओं के लेबल मुर्दा तिलचट्टों-से चिपके थे।

वह चुप हैं ..रूपसिंह चंदेल की कहानी



वह चुप हैं

 वह चुप हैं... बिल्कुल ही चुप।
वैसे कम बोलना उनकी आदत है। यह आदत उन्होंने विकसित की है। कभी वह अधिक बोलते थे जिस पर उन्होंने सप्रयास नियंत्रण पा लिया। वह जानते थे कि कम बोलने के लाख लाभ होते हैं। साथी मुँह ताकते रहते हैं कि वह कुछ बोलें लेकिन वह चुप रहते हैं। दूसरों को सुनते हैं और उनके कहे को अपने अंदर गुनते हैं। अवसरानुकूल कुछ शब्द उच्चरित कर देते हैं... एक-एक शब्द पर बल देते हुए। वह अपने वाक्यों की असंबद्धता की चिन्ता नहीं करते। चिन्ता करते हैं अधिक न बोलने की। अधिक बोलने को अब वह स्वास्थ्य खराब होने के कारणों में से एक मानते हैं। स्वास्थ्य को वह व्यापक अर्थ में लेते हैं,जो शारीरिक ही नहीं सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक... व्यापक संदर्भों से जुड़ता है।

Friday, October 21, 2016

धिक्कांर..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



धिक्कांर
 
अनाथ और विधवा मानी के लिए जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलम्ब  न था । वह पांच वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया । सोलह वर्ष की अवस्थाा मकं मुहल्ले वालों की मदद से उसका विवाह भी हो गया पर साल के अंदर ही माता और ‍पति दोनों विदा हो गए। इस विपति में उसे उपने चचा वंशीधर के सिवा और कोई नज़र न आया, जो उसे आश्रय  देता । वंशीधर ने अब तक  जो व्य वहार किया था, उससे यह आशा न हो सकती थी कि वहां वह शांति के साथ रह सकेगी पर वह सब कुछ सहने और सब कुछ करने को तैयार थी । वह गाली, झिड़की, मारपीट सब सह लेगी, कोई उस पर संदेह तो न करेगा, उस पर मिथ्याझ लांछन तो न लगेगा, शोहदों और लुच्चों  से तो उसकी रक्षा होगी । वंशीधर को कुल मर्यादा की कुछ चिन्तान हुई । मानी की वाचना को अस्वींकार न कर सके ।

जली हुई रस्सी ...शानी की कहानी



जली हुई रस्सी

अपने बर्फ जैसे हाथों से वाहिद ने गर्दन से उलझा हुआ मफलर निकाला और साफिया की ओर फेंक दिया। पलक-भर वाहिद की ओर देखकर साफिया ने मफलर उठाया और उसे तह करती हुई धीमे स्वर में बोली, 'क्या मीलाद में गए थे?'

भविष्यदृष्टा ...ओमा शर्मा की कहानी



भविष्यदृष्टा

" विद्यात्र लिखिता याऽसो ललाटेऽक्षरमालिका।
देवज्ञस्तां पठेदव्यक्तं होशनिर्मल चक्षुषा..."
(सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने सब जीवों का नसीब उनके ललाट पर खोद दिया है, कोई पारखी निगाह ज्योतिषी ही उसे पढ़ सकता है)
----सर्वल्ली
जिला भंडारा से खत वहाँ मेरा कौन है कहीं वैष्णो देवी या भभूति बाबा के नाम पर चलाए जा रहे गुमराह अभियान की लंपट पकड़ से निजात पाने के लिए किसी 'एक और' मासूम शिकार ने तो नहीं लिखा। दाम और दंड की कनफोड़ डुगडुगी बजाती हुई एक चिट्ठी तो हर महीने आ ही जाती है।

Thursday, October 20, 2016

शांति..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



शांति
 
स्वतर्गीय देवनाथ मेरे अभिन्न  मित्रों में थे। आज भी जब उनकी याद आती है, तो वह रंगरेलियां आंखों में फिर जाती हैं, और कहीं एकांत में जाकर जरा रो लेता हूं। हमारे देर रो लेता हूं। हमारे बीच में दो-ढाई सौ मील का अंतर था। मैं लखनऊ में था, वह दिल्ली  में; लेकिन ऐसा शायद ही कोई महीना जाता हो कि हम आपस में न मिल पाते हों। वह स्व च्छंन्द; प्रकति के विनोदप्रिय, सहृदय, उदार और मित्रों पर प्राण देनेवाला आदमी थे, जिन्होंदने अपने और पराए में कभी भेद नहीं किया। संसार क्या है और यहां लौकिक व्य्वहार का कैसा निर्वाह होता है, यह उस व्य।क्ति ने कभी न जानने की चेष्टाक की। उनकी जीवन में ऐसे कई अवसर आए, जब उन्हेंन आगे के लिए होशियार हो जाना चाहिए था।

मेजर चौधरी की वापसी ..अज्ञेय की कहानी



मेजर चौधरी की वापसी
किसी की टाँग टूट जाती है, तो साधारणतया उसे बधाई का पात्र नहीं माना जाता। लेकिन मेजर चौधरी जब छह सप्ताह अस्पताल में काटकर बैसाखियों के सहारे लडख़ड़ाते हुए बाहर निकले, तो बाहर निकलकर उन्होंने मिजाजपुर्सी के लिए आये हुये अफसरों को बताया कि उनकी चार सप्ताह की वारलीवके साथ उन्हें छह सप्ताह की कम्पेशनेट लीवभी मिली है, और उसके बाद ही शायद कुछ और छुट्टी के अनन्तर उन्हें सैनिक नौकरी से छुटकारा मिल जाएगा, तब सुननेवालों के मन में अवश्य ही ईष्र्या की लहर दौड़ गयी थी। क्योंकि मोकोक्चङ् यों सब-डिवीजन का केन्द्र क्यों न हो, वैसे वह नगा पार्वत्य जंगलों का ही एक हिस्सा था, और जोंक, दलदल, मच्छर, चूती छतें, कीचड़ फर्श, पीने को उबाला जाने पर भी गँदला पानी और खाने को पानी में भिगोकर ताजा किये गये सूखे आलू-प्याज-ये सब चीज़ें ऐसी नहीं हैं कि दूसरों के सुख-दु:ख के प्रति सहज औदार्य की भावना को जागृत करें!

अब कल आएगा यमराज..अभिमन्यु अनत की कहानी



अब कल आएगा यमराज 

 
अपने गले में लटके मंगलसूत्र के तमगे को वह अपने अँगूठे और दो अँगुलियों के बीच उलटती-पलटती रही। उसकी सूखी आँखें चारदीवारी की कसमसाती खामोशी को घूरती रहीं। उससे चंद कदमों की दूर पर ही करन अपनी पत्नी के हाथ के तमगे की तरह अपने बदन के पुराने सोफे पर उलटता-पटलता जा रहा था वह पहला अवसर नहीं था कि करन उस तरह की छटपटाहट में था और अपने आपको असहाय पा रही थी। ऐसे अनेक क्षण बीत गए। वह शून्य के दायरे में खामोशी को झेलती रही।

Wednesday, October 19, 2016

बड़े भाई साहब..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



बड़े भाई साहब


मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्होटने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्वन के मामले में वह जल्दी बाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता  न हो, तो मकान कैसे पाएदार बने।

एक नाव के यात्री ..शानी की कहानी



एक नाव के यात्री


कीर्ति मारे उत्सुकता के फिर खड़ी हो गई। यह पाँचवी मरतबा था, लेकिन इस बार लगा कि सीटी की आवाज सचमुच दूर से काफी नजदीक होती आ रही है और गाड़ी प्लेटफार्म में प्रवेश करे, इसमें अधिक देर नहीं...
घबराहट से चेहरे का पसीना पोंछने के लिए उसने रूमाल टटोला। नहीं था। बेंच पर छूटने की भी कोई संभावना नहीं थी। जल्दी-जल्दी यही होता है, उसने सोचा। वह साड़ी से ही मुँह पोंछना चाहती थी, लेकिन तभी यक-ब-यक सारे प्लेटफार्म में मुसाफिरों तथा सामान लदे कुलियों की भगदड़ मच गई -

सब बकवास ..रूपसिंह चंदेल की कहानी



सब बकवास


हम जब उनके बँगले में पहुँचे, आसमान बिल्कुल साफ था, धूप खिली हुई थी और बँगले में खड़े नीम, आम, अमरूद, अनार-के पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। बँगले के एक ओर एक कोने में केले के वृक्षों का समूह एक-दूसरे से मुँह जोड़े खड़े थे और उनमें घारें और खिलने को विकल फूल लटक रहे थे। लगभग एक हजार वर्गमीटर में फैले उस बँगले, जी हाँ उन्होंने बँगला ही कहा था और वह था भी, में आगे के आधे भाग में फैला था उनका वह उद्यान।

Tuesday, October 18, 2016

बेटोंवाली विधवा..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



बेटोंवाली विधवा


पंडित अयोध्यानाथ का देहान्त हुआ तो सबने कहा, ईश्वर आदमी की ऐसी ही मौत दे। चार जवान बेटे थे, एक लड़की। चारों लड़कों के विवाह हो चुके थे, केवल लड़की क्वॉँरी थी। सम्पत्ति भी काफी छोड़ी थी। एक पक्का मकान, दो बगीचे, कई हजार के गहने और बीस हजार नकद। विधवा फूलमती को शोक तो हुआ और कई दिन तक बेहाल पड़ी रही, लेकिन जवान बेटों को सामने देखकर उसे ढाढ़स हुआ। चारों लड़के एक-से-एक सुशील, चारों बहुऍं एक-से-एक बढ़कर आज्ञाकारिणी।

जनम ..ओमा शर्मा की कहानी



जनम

 वे सुनाते जा रहे थे।
और हम सब टकटकी लगाकर सुने जा रहे थे - गोया बचपन की राजा-रानी को कहानी में राजकुमार तमाम पहरेदारों को चकमा देकर राजकुमारी के कक्ष तक जा पहुँचा हो, किवाड़ पर 'धप्प' करने ही वाला हो की दरबानों के पदचापों का हमला।
क्या करेगा अब राजकुमार?

दूर है किनारा..अंजू शर्मा की कहानी



दूर है किनारा 
 
तपन ने आसमान की ओर सर उठाकर देखा तो कुछ देर बस देखता ही रहा! आकाश तो वहाँ भी था पर इतना खुला कभी नहीं लगा, खूब खुला, निस्सीम, अनंत! और ये हवा, ये भी तो वहाँ थी पर इतनी आजाद, इतनी खुशनुमा कभी न थी! उसने जोर से सांस खिंची, इतनी जोर से मानो ब्रह्माण्ड की सारी हवा अपने फेफड़ों में भर लेने की ख्वाहिश रखता हो! कैसा हल्का महसूस कर रहा था खुद को, जैसे सदियों से एक बोझ उठाये हुए उसका वजूद थक गया था! कैसी थी यह थकान! बचपन में सुनी थी माँ से कहानी कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है! आज लगा...ना तो... सब झूठ है... निरा प्रलाप है... पृथ्वी तो उसके कंधों पर टिकी थी! बस अभी तो मुक्त हुआ था वह उसके भार से! और ये सुबह... इस सुबह की प्रतीक्षा में कितनी रातें तपन ने बिना जागे ही काट दी, रातें जो उसकी आँखों में उगी, ढली और सो गईं पर क्या वह कभी सुकून का एक लम्हा जी पाया था!

Monday, October 17, 2016

पर्वत यात्रा..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



पर्वत यात्रा

प्रात:काल मुं. गुलाबाज खां ने नमाज पढ़ी, कपड़े पहने और महरी से किराये की गाड़ी लाने को कहा। शीरी बेगम ने पूछाआज सबेरे-सबेरे कहां जाने का इरादा है?
      गुलजरा छोटे साहब को सलाम करने जाना है।
      शीरींतो पैदल क्यों नही चले जाते ? कौन बड़ी दूर है।
      गुलजो बात तुम्हारी समझ मे न आये, उसमें जबान न खोला करो।
      शीरींपूछती तो हूं पैदल चले जाने मे क्या हरज है? गाड़ीवाला एक रूपये से कम न लेगा।
      गुल—(हंसकर) हुक्काम किराया नही देते। उसकी हिम्मत है कि मुझसे किराया मांगे! चालान करवा दूं।

पलाश के फूल..अमरकांत की कहानी



पलाश के फूल 

नए मकान के सामने पक्की चहारदीवारी खड़ी करके जो अहाता बनाया गया है, उसमें दोनो ओर पलाश के पेड़ों पर लाल-लाल फूल छा गए थे।

राय साहब अहाते का फाटक खोलकर अंदर घुसे और बरामदे में पहुँच गए। धोती-कुर्ता, गाँधी टोपी, हाथ में छड़ी... हाथों में मोटी-मोटी नसें उभर आई थीं। गाल भुने हुए बासी आलू के समान सिकुड़ चले थे, मूँछ और भौंहों के बालों पर हल्की सफेदी...

खुशकिस्मत..मृदुला गर्ग की कहानी



खुशकिस्मत

 हाथ में दवा का पत्ता थामे, निश्चेष्ट नलिनी सोच रही थी, उससे गलती ठीक कब हुई। अगर यह दवा न खिलाई होती तो क्या नरेंद्र जीवित होता? या आखिरी क्षण अपोलो अस्पताल के डाक्टर से लिया अपॉइंटमेंट रद्द करके वह उसे दूसरे अस्पताल न ले गई होती तो जीवित होता? वहीं के न्यूरोलोजिस्ट ने दवा की मिकदार बढ़ाई थी न? वह सलाह परिवार के परिचित डाक्टर ने दी थी; उन्हीं के दवाखाने से फोन करके अपोलो का अपॉइंटमेंट रद्द करके दूसरे अस्पताल फोन लगाया था। तुरंत समय मिल गया तो ले गई। परिचित डाक्टर पर आस्था थी इसीलिए उनकी सलाह मान कर न?

Saturday, October 15, 2016

समर यात्रा..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



समर यात्रा
           
            आज सबेरे ही से गॉँव में हलचल मची हुई थी। कच्ची झोपड़ियॉँ हँसती हुई जान पड़ती थी। आज सत्याग्रहियों का जत्था गॉँव में आयेगा। कोदई चौधरी के द्वार पर चँदोवा तना हुआ है। आटा, घी, तरकारी , दुध और दही जमा किया जा रहा है। सबके चेहरों पर उमंग है, हौसला है, आनन्द है। वही बिंदा अहीर, जो दौरे के हाकिमो के पड़ाव पर पाव-पाव भर दूध के लिए मुँह छिपाता फिरता था, आज दूध और दही के दो मटके अहिराने से बटोर कर रख गया है। कुम्हार, जो घर छोड़ कर भाग जाया करता था , मिट्टी के बर्तनों का अटम लगा गया है। गॉँव के नाई-कहार सब आप ही आप दौड़े चले आ रहे हैं। अगर कोई प्राणी दुखी है, तो वह नोहरी बुढ़िया है। वह अपनी झोपड़ी के द्वार पर बैठी हुई अपनी पचहत्तर साल की बूढ़ी सिकुड़ी हुई ऑंखों से यह समारोह देख रही है और पछता रही है। उसके पास क्या है,जिसे ले कर कोदई के ,द्वार पर जाय और कहेमैं यह लायी हूँ। वह तो दानों को मुहताज है।

दुश्मन मेमना..ओमा शर्मा की कहानी



दुश्मन मेमना


वह पूरे इत्मीनान से सोई पड़ी है। बगल में दबोचे सॉफ्ट तकिए पर सिर बेढंगा पड़ा है। आसमान की तरफ किए अधखुले मुँह से आगे वाले दाँतों की कतार झलक रही हैं। होंठ कुछ पपड़ा से गए हैं,साँस का कोई पता ठिकाना नहीं है। शरीर किसी खरगोश के बच्चे की तरह मासूमियत से निर्जीव पड़ा है। मुड़ी-तुड़ी चादर का दो तिहाई हिस्सा बिस्तर से नीचे लटका पड़ा है। सुबह के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। हर छुट्टी के दिन की तरह वह यूँ सोई पड़ी है जैसे उठना ही न हो। एक-दो बार मैंने दुलार से उसे ठेला भी है... समीरा, बेटा समीरा, चलो उठो... ब्रेक फास्ट इज रेडी...। मगर उसके कानों पर जूँ नहीं रेंगी है। उसके मुड़े हुए घुटनों के दूसरी तरफ खुली त्रिकोणीय खाड़ी में किसी ठग की तरह अलसाए पड़े कास्पर (पग) ने जरूर आँखें खोली हैं मगर कुछ बेशर्मी उस पर भी चढ़ आई है। बिगाड़ा भी उसी का है।

तार..मो. आरिफ की कहानी



तार

पहले इन साहब को जरा आप जान लीजिए - इन्हीं की जुबानी। इसके बाद मेरी सुनिएगा। इनसे जो कुछ छूट जाएगा, मैं बताने की कोशिश करूँगा। मुझसे कुछ छूटा तो आप जोड़ने-घटाने के लिए स्वतन्त्र हैं। तो पहले यह सज्जन स्वयं।

अमृत..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



अमृत

मेरी उठती जवानी थी जब मेरा दिल दर्द के मजे से परिचित हुआ। कुछ दिनों तक शायरी का अभ्यास करता रहा और धीर-धीरे इस शौक ने तल्लीनता का रुप ले लिया। सांसारिक संबंधो से मुंह मोड़कर अपनी शायरी की दुनिया में आ बैठा और तीन ही साल की मश्क़ ने मेरी कल्पना के जौहर खोल दिये। कभी-कभी मेरी शायरी उस्तादों के मशहूर कलाम से टक्कर खा जाती थी। मेरे क़लम ने किसी उस्ताद के सामने सर नहीं झुकाया।

कामयाब..ममता कालिया की कहानी



कामयाब

हमारा घर उनके घर से सटा हुआ था। दोनों घरों के बीच दीवार थी जिसमें कोई खिड़की नहीं थी। काफी दिन सियासत में पापड़ बेल कर अब वे विधान परिषद के सदस्य बन गए थे। उनका एक पैर लखनऊ और एक इलाहाबाद रहता। दोस्ताना तबीयत पाई थी। अगर एक दिन को भी घर आते, हमसे जरूर मिलते। कई बार ऐसा भी हुआ कि दोपहर में हमारे ही घर पर एक लंबी झपकी मार कर आराम कर लिया।

जिज्ञासा..अज्ञेय की कहानी



जिज्ञासा     
ईश्वर ने सृष्टि की।

सब ओर निराकार शून्य था और अनन्त आकाश में अन्धकार छाया हुआ था। ईश्वर ने कहा - प्रकाश हो! और प्रकाश हो गया। उसके आलोक में ईश्वर ने आकाश के असंख्य टुकड़े किये और प्रत्येक में एक-एक तारा जड़ दिया। तब उसने सौर-मंडल बनाया। और उसे जान पड़ा कि उसकी रचना अच्छी है।