Monday, October 24, 2016

तिरसूल..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



तिरसूल


अंधेरी रात है, मूसलाधार पानी बरस रहा है। खिड़कियों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिड़की से बाहर जाती है तो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें तीरों की तरह नोकदार, लम्बी, मोटी, गिरती हुई नजर आ जाती हैं। इस वक्त अगर घर में आग भी लग जाय तो शायद मैं बाहर निकलने की हिम्मत न करूं। लेकिन एक दिन जब ऐसी ही अंधेरी भयानक रात के वक्त मैं मैदान में बन्दूक लिये पहरा दे रहा था। उसे आज तीस साल गुजर गये। उन दिनों मैं फौज में नौकर था। आह! वह फौजी जिन्दगी कितने मजे से गुजरती थी। मेरी जिन्दगी की सबसे मीठी, सबसे सुहानी यादगारें उसी जमाने से जुड़ी हुई हैं। आज मुझे इस अंधेरी कोठरी में अखबारों के लिए लेख लिखते देखकर कौन समझेगा कि इस नीमजान, झुकी हुई कमरवाले खस्ताहाल आदमी में भी कभी हौसला और हिम्मत और जोश का दरिया लहरे मारता था। क्या-क्या दोस्त थे जिनके चेहरों पर हमेशा मुसकराहट नाचती रहती थी। शेरदिल रामसिंह और मीठे गलेवाले देवीदास की याद क्या कभी दिल से मिट सकती है? वह अदन, वह बसरा, वह मिस्त्र; बस आज मेरे लिए सपने हैं। यथार्थ है तो यह तंग कमरा और अखबार का दफ्तर।

महत्तम समापवर्त्य ..ओमा शर्मा की कहानी



महत्तम समापवर्त्य

 उनकी हर चीज में नफासत थी।
बोल-चाल में संयत ठहराव। पहनावे में जहीनी चटख और हावभाव में गरिमापूर्ण सादगी। घर की इमारत किसी कलात्मक वास्तुशिल्पी ने बनाई थी। घुमावदार सीढ़ियाँ, पर्याप्त रोशनी, लुभावना रंग-रोगन, जगह की व्यवस्था में आमंत्रित-सा करता खुलापन। मुझे तो पुरोहित साहब, यानी मेरे बॉस ने पहले ही बता दिया था कि मिसेज चाँद ने इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स किया हुआ है। आना पहले उन्हीं को था मगर आखिर वक्त में उन्हें किसी जरूरी काम से जाना पड़ा तो उन्होंने मुझे ठेल दिया... कि जाओ और फलाँ बँगले के इंटीरियर में और क्या किया जा सकता है, इसका मुआयना कर आओ। चटख मोटे परदे, विशिष्ट किस्म की मेज-कुर्सियाँ, मेज पर रखे हुए कुछ स्टैच्यूज... हर कमरे की एक अलग ही सज्जा। घर में घुसने के बाद थोड़ी देर बैठने का मन करे। चीजों को निहारने का मन करे। रही-सही कसर पूरी कर दी साज-सज्जा के अनुरूप रखी दो-तीन पेंटिंग्स ने जो पूरे मकान के सौंदर्य पर चार-चाँद लगा रही थीं।

अखबारवाला..मनमोहन भाटिया की कहानी



अखबारवाला

 कॉलिज के दिनों में एक बुरी लत गई, जो आज तक पीछा नही छोङ रही है। कई बार पत्नी से भी बहस हो जाती है, मेरे से ज्यादा प्यारा अखबार है, जिसके साथ जब देखो, चिपके रहतो हो। क्या किया जाए, अखबार पढने का नशा ही कुछ ऐसा है कि सुबह नही मिले तो लगता है कि दिन ही नही निकला। खैर पत्नि की अखबार वाली बात को गंभीरता से नही लेता हूं क्योंकि मेरे ऑफिस जाने के बाद खुद उसने पूरा अखबार चाटना है। पढी लिखी पत्नी चाहे, वो हाऊस वाईफ हो, एक फायदा तो होता है, कम से कम वह अखबार का महत्व समझती है। प्रेम भरी तकरार पति, पत्नी के प्यार को अधिक गाढा करती है। प्रेम भरी तकरार ही गृहस्थ के सूने पन को दूर करती है। तकरार ही आलौकिक प्रेम की जननी है।

Sunday, October 23, 2016

ज्योति..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



ज्योति


विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती-आप तो सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । जब इतनी जल्दी जाना था, तो ब्याह न जाने किसलिए किया । घर में भूनी भॉँग नहीं, चले थे ब्याह करने ! वह चाहती तो दूसररी सगाई कर लेती । अहीरों में इसका रिवाज है । देखने-सुनने में भी बुरी न थी । दो-एक आदमी तैयार भी थे, लेकिन बूटी पतिव्रता कहलाने के मोह को न छोड़ सकी । और यह सारा क्रोध उतरता था, बड़े लड़के मोहन पर, जो अब सोलह साल का था । सोहन अभी छोटा था और मैना लड़की थी । ये दोनों अभी किसी लायक न थे । अगर यह तीनों न होते, तो बूटी को क्यों इतना कष्ट होता । जिसका थोड़ा-सा काम कर देती, वही रोटी-कपड़ा दे देता। जब चाहती किसी के सिर बैठ जाती । अब अगर वह कहीं बैठ जाए, तो लोग यही कहेंगे कि तीन-तीन बच्चों के होते इसे यह क्या सूझी ।

चहल्लुम ..शानी की कहानी

चहल्लुम

अचानक फिर मरदाने में इतने जोर का कहकहा उठा कि मरियम चौंककर सीधी बैठ गई। अबकी बार सहना मुश्किल हो गया था। वह चाहती थी कि बस एक बार उन खुदा के बंदों को देख ले जो गमी का खाना खाने आए थे और मौका-महल का जिन्हें बिल्कुल ध्यान नहीं था। पर वह भी संभव नहीं हुआ। आँगन के बीचोंबीच मरदाने और जनाने को अलग-अलग करने के लिए एक बड़ा-सा परदा तना हुआ था, उस पार देखना सचमुच कठिन था।

आदमी के बारे में सोचते लोग..बलराम अग्रवाल की कहानी



आदमी के बारे में सोचते लोग


यार लोग तीन-तीन पैग गले से नीचे उतार चुके थे। यों शुरू से ही वे चुप बैठे हों, ऐसा नहीं था, लेकिन तब उनकी बातों का केंद्र बोतल में कैद लाल परी थी, सिर्फ लाल परी। उसे पेट में उतार लेने के बाद उन्हें लगा कि पीने-पिलाने को ले कर हुई सारी बातें और बहसें बहुत छोटे और ओछे लोगों जैसी थीं। अब कुछ बातें बड़े और ऊँचे दर्जे के दार्शनिकों जैसी की जानी चाहिए।

सैलानी बंदर..मुंशी प्रेमचन्द की कहानी



सैलानी बंदर
 
जीवनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मन्नू को नचाकर अपनी जीविका चलाया करता था। वह और उसकी स्त्री बुधिया दोनों मन्नू का बहुत प्यार करते थे। उनके कोई सन्तान न थी, मन्नू ही उनके स्नेह और प्रेम का पात्र था दोनों उसे अपने साथ खिलाते और अपने साथ सुलाते थे: उनकी दृष्टि में मन्नू से अधिक प्रिय वस्तु न थी। जीवनदास उसके लिए एक गेंद लाया था।

Saturday, October 22, 2016

कव्वे और काला पानी..निर्मल वर्मा की कहानी



कव्वे और काला पानी

मास्टर साहब पहले व्यक्ति थे, जिनसे मैं उस निर्जन, छोटे, उपेक्षित पहाड़ी कस्बे में मिला था। पहले दिन ही... मैं बस से उतर ही रहा था, तो देखा, सारा शहर पानी में भीग रहा है; भुवाली में धूप, रामगढ़ पर बादल और यहाँ बारिश - हमारी बस ने तीन घंटों के दौरान तीन अलग-अलग मौसम पार कर लिए थे; और अब वह बाजार के बीच खड़ी थी -अपनी छत से मेरा सामान नीचे फट-फट फेंकती हुई, फटीचर सामान, जो मैं दिल्ली से ढो कर वहाँ लाया था - बाबू का एक पुराना होल्डॉल और पुराने जमाने का टीन का ट्रंक, जिस पर पुरानी यात्राओं के लेबल मुर्दा तिलचट्टों-से चिपके थे।

वह चुप हैं ..रूपसिंह चंदेल की कहानी



वह चुप हैं

 वह चुप हैं... बिल्कुल ही चुप।
वैसे कम बोलना उनकी आदत है। यह आदत उन्होंने विकसित की है। कभी वह अधिक बोलते थे जिस पर उन्होंने सप्रयास नियंत्रण पा लिया। वह जानते थे कि कम बोलने के लाख लाभ होते हैं। साथी मुँह ताकते रहते हैं कि वह कुछ बोलें लेकिन वह चुप रहते हैं। दूसरों को सुनते हैं और उनके कहे को अपने अंदर गुनते हैं। अवसरानुकूल कुछ शब्द उच्चरित कर देते हैं... एक-एक शब्द पर बल देते हुए। वह अपने वाक्यों की असंबद्धता की चिन्ता नहीं करते। चिन्ता करते हैं अधिक न बोलने की। अधिक बोलने को अब वह स्वास्थ्य खराब होने के कारणों में से एक मानते हैं। स्वास्थ्य को वह व्यापक अर्थ में लेते हैं,जो शारीरिक ही नहीं सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक... व्यापक संदर्भों से जुड़ता है।